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महंगाई पर कविता | Poem on Mehangai

V singh
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मंहगाई आज दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है ओर बेरोजगारों, मजदूरों, किसानो के जीवन मे अनेको समस्याए पैदा करती जा रही है, अगर ऐसे ही मंहगाई बढ़ती जायेगी तो गरीबों का जीवन जीना मुश्किल हो जायेगा, भारत देश जब से स्वतंत्र हुवा तभी से वस्तुओ की कीमत बढ़ती जा रही है, मंहगाई से अमीरों के जीवन मे तो कुछ ज्यादा प्रभाव नहीं बढ़ता पर गरीब मंहगाई के नाम से ही डर जाता है, मंहगाई का गरीब के जीवन मे बहुत प्रभाव पड़ता है, उसके  जीवन मे अनेको समस्याएँ  पैदा हो जाती है, उसके लिए अपने परिवार को पालना मुश्किल हो जाता है, तीन वक्त का खाना जुटाना मुश्किल हो जाता है, जिसके कारण बहुत से गरीब बच्चे कुपोषण का शिकार हो जाते है,  एक गरीब इंसान  दिन भर की आमदनी से तीन  टाइम का  खाना भी नहीं जुटा पाता फिर कैसे  वो बच्चों को पढ़ाये, कैसे बीमारी का इलाज कराये
आज हम मंहगाई पर कविता (Poem on Mehangai) लाये है, जो महंगाई के कारण गरीब के जीवन मे पढ़ने वाले प्रभावों को बताती है |

महंगाई पर कविता ( Poem on Mehangai)

मंहगाई पर कविता
महंगाई पर कविता 

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 महंगाई पर कविता - गरीब को फर्क पड़ता है 


 महंगाई मारती है गरीब को
अमीर को क्या फर्क पड़ता है|

रोटी, कपडे की कीमत बढ़े जितनी चाहे
पर अमीर को क्या फर्क पड़ता है|

देखो हालत गरीब मजदूरों की 
फर्क तो मंहगाई का उनपे दिखता है|

मेहनत करते है जी जान से वो
रोटी, कपडे, मकान के लिए|

पर कपडे, मकान तो छोड़ो वो
दो वक्त का खाना भी नहीं जूटा पाते|

कुपोषण की बीमारी से 
बच्चों को नहीं बचा पाते है |

शकर, है उनके लिए मंहगी 
वो बिना शकर की चाय पीते है|

सब्जियाँ है इतनी ज्यादा मंहगी  की
सुखी रोटी खा भूख मिटाते है |

दिन भर की कमाई से वो
मुश्किल से घर चलाते है|

बढ़ जाये मंहगाई अगर तो
वो परेशान हो जाते है|

कैसे बच्चों को शिक्षा दिलाए 
कैसे खाना, कपड़ा है जुटाए |

गरीब मजदूर, किसान है वो 
कैसे इतनी मंहगाई मे घर चलाए |

बुरा हाल हो जाता है उनका 
जब जब मंहगाई बढ़ती है |

मंहगाई से फर्क पड़ता है उनको 
मंहगाई से फर्क पड़ता है उनको|

Poem on Mehangai in Hindi 


मंहगाई की मार से
गरीबों का हुवा बुरा हाल|

क्या खाये, क्या पिए
कैसे स्वस्थ रहे परिवार|

दिन भर मजदूरी कर
कुछ पैसे है कमाते है|

अनाज इतना मंहगा की
एक टाइम का खाना भी
नहीं जुटा पाते है|

फिर कैसे वो परिवार को पाले
कैसे मंहगाई की मार को झेले|

गरीबों का हुवा बुरा हाल
मंहगाई ने फैलाया अपना जाल|

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