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गरीबी पर कविता | Poem On Poverty In Hindi

V singh
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गरीबी भी क्या चीज है, जिसके घर आती है दुःख ही दुःख लाती है हर गरीब इससे परेशान है, इसको मिटाने का पूरा प्रयास करता है पर गरीबी कहा छोड़े उसका पिछा उसे तो गरीब को सताना है, एक - एक रोटी के लिए तड़पाना है, हर इंसान की शुरूवात गरीबी से नही होती किस्मत जिसकी अच्छी होती है, वो अमीरों के घर पैदा होता है, गरीब तो जिंदगी भर रोटी , कपड़ा , मकान जुटाने में ही रह जाता है,आज हम गरीबी पर कविता लेकर आए है जो आपको जरूर पसंद आएगी।

Garibi Par Kavita
Hindi Poem On Poverty 

गरीबी पर कविता | Poem On Poverty In Hindi 

सुख कहा नसीब हूवा उस गरीब को
वो तो बचपन से दुखी रहता है
हर रोज रोटी, कपड़े मकान के लिए 
वो कठिन मेहनत करता है।

न बचपन जिया हंसते खेलते
दिन कट जाते थे भूख, प्यास के चलते 
रोते - रोते, रोते - रोते
सुख कहा नसीब हूवा उस गरीब को
वो तो बचपन से दुखी रहता है।

पढ़ना चाह कर भी वो कैसे पढ़ता 
जिम्मेवारियों का बोझ उसके कंधो में था 
वो ना चाह कर भी कड़ी धूप में बहा पसीना 
एक टाइम की रोटी जुटाता है।

दर्द उसे भी होता है बीमार वो भी होता है
वो बीमारी से मर जाता है पर 
इलाज के लिए पैसा नही जुटा पाता है 
सुख कहा नसीब हूवा उस गरीब को
वो तो बचपन से दुखी रहता है।

अगर किसी गरीब का बच्चा
पढ़ लिख भी जाता है
तो रोजगार के लिए उसे
इधर उधर भटकना पड़ता है
इधर उधर भटकना पड़ता है
सुख कहा नसीब हूवा उस गरीब को
वो तो बचपन से दुखी रहता है।
                        - V Singh

गरीबी पर कविता 

किसी के पास है इतना की
वो खाने को बर्बाद कर रहा
कोई है इतना गरीब की 
एक - एक रोटी को तरस रहा
गरीबी, गरीबी, गरीबी, गरीबी
इंसान के सर पर कलंक बनी
बचपन से बुढ़ापे तक की
दुःख की एक कहानी बनी
दुःख की एक कहानी बनी।
                      - V Singh
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